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धड़क  : स्त्री० [हिं० धड़कना] १. धड़कने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. अनाभ्यास, भय, संकोच आदि के कारण कोई काम करने से पहले या करते समय मन में होनेवाला असमंजस या आशंका। मुहा०—(किसी बात या काम में) धड़क खुलना=पहले की सी आशंका, भय या संकोच न रह जाना। पद—बेधड़क=बिना किसी प्रकार के भय या संकोच के। भय रहित या निसंकोच होकर। ३. दे० ‘धड़कन’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
धड़कन  : स्त्री० [हिं० धड़क] १. धड़कने की क्रिया या भाव। २. हृदय की गति बहुत तीव्र होने पर उसका तीव्र और स्पष्ट स्पंदन। ३. हृदय का एक रोग जिसमें वह प्रायः धड़कता रहता है। धड़की। ४. दे० ‘धड़क’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
धड़कना  : अ० [अनु०] १. धड़-धड़ शब्द उत्पन्न होना। २. आशंका उद्वेग आदि तीव्र मनोविकारों अथवा कुछ रोगों के कारण हृदय में इस प्रकार जोर की गति होना कि उसमें से धड़-धड़ या हलका शब्द होने लगे। कलेजा धक-धक करना। जैसे—डाकुओं को देखते ही स्त्रियों का कलेजा (या दिल) धड़कने लगा। अ०, स०=धड़धड़ाना।a
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
धड़का  : पुं० [अनु० धड़] १. दिल की धड़कन। २. दिल धड़कने से उत्पन्न होनेवाला शब्द। ३. आशंका। खटका। भय। जैसे—चलो मार खाने का धड़का छूटा। ४. खेतों में से चिड़ियों को उड़ाकर भगाने के लिए खड़ा किया जानेवाला वह पुतला या बाँस जिसे खट-खटाने से धड़-धड़ शब्द होता है। धोखा। पुं०=धड़ाका।a
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धड़काना  : स० [हिं० धड़क] १. किसी के दिल में धड़क पैदा करना। धड़कने में प्रवृत्त करना। २. किसी के मन में आशंका या खटका उत्पन्न करके उसे दहलाना। संयो० क्रि०—देना। ३. धड़-धड़ शब्द उत्पन्न करना।
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धड़क्का  : पुं० १. धड़का। २. धड़ाका। ३. ‘धूम’ का निरर्थक अनुकरणात्मक शब्द।
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